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हालात के हाथों क्या बिक जाना चाहिए था ‌‌ उसके ख़्याल से तो हमें मर जाना चाहिए था •••

हालात के हाथों क्या बिक जाना चाहिए था

उसके ख़्याल से तो हमें मर जाना चाहिए था


पत्थर जो हम पर फेंके गए सड़कों म़ें पड़े हैं

क्या झुक कर पत्थरों को उठाना चाहिए था


दिल तोड़ कर फिर पूछते हैं, दर्द कहाँ कहाँ

मासूम सवाल पे हमें मुस्कुरााना चाहिए था


कुछ रोज़ ही पहले इधर से गुज़रीं थी बहारें

गुंचे को, अचानक नहीं मुरझाना चाहिए था


आँखों की नमी देख कर ,छत से पलट गया

छाया था अगर अब्र ,बरस जाना चाहिए था


भूल गया होगा वो शायद याद तो करनी थी

शाम से पहले,तो घर लौट आना चाहिए था


कोई तक़दीर नहीं थी,मिटानी जिसे मुश्किल

ये नाम हमारा ज़ेह्न से मिट जाना चाहिए था

(विनोद प्रसाद)

अब्र :: बादल

 
 
 

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