- Vinode Prasad
- Sep 5
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जन्म के बाद
जब मेरी आँखों को
दृष्टिज्ञान हुआ
मैं ने एक चेहरा देखा
वो मेरी माँ थी
जब मेरी देह को
स्पर्श ज्ञान हुआ
मैं ने जिस स्पर्श में
कोमलता पाई
वो हाथ
मेरी माँ के थे
मेरी पहली ख़ुराक़
मेरी मांँ का दूध था
जो शब्द मैं ने
सबसे पहले
उच्चरित किए
वो माँ था
भूख मेरी थी
अनुभव मेरी माँ करती थी
आज कह सकता हूँ
संसार की सबसे सुरक्षित जगह
मेरे लिए
मांँ की गोद थी
अंतहीन है ये अनुभव
आज दीवार पर टंगी
मांँ की तस्वीर देखता हूंँ
भीग जाते हैं नैन
झुक जाती है गर्दन
ईश्वर को धन्यवाद
आपने
सृष्टि की सबसे बड़ी दौलत
हमें दी
एक पिंड से
मनुष्य बनाया मेरी मां ने
जीवन मृत्यु एक क्रम है
मैं भी कल नहीं रहूंगा
किंतु,
माँ का दैव्य स्वरुप रहे
विनती करता हूँ
जो मैं नहीं देख पा रहा हूंँ
संभवतः मेरा दृष्टि दोष हो
शायद•••••
नास्ति मातृसमं त्राणं नास्ति मातृसमा प्रपा॥
🙏🙏🙏🙏
(विनोद प्रसाद)