
मुमकिन नहीं है,हर मोड़ से अपनी राह मिले
एक बार मुश्किलात से खुलकर निगाह मिले
देखना आईने में ख़ुद को लाज़िम है ऐ दोस्त
जाने किस चेहरे में कब कौन से गुनाह मिले
इन आँखों में जुगनुओं को,संभाल के रखना
कल की शब शायद तुझे और भी स्याह मिले
कुछ दिन तो ठहर जाते,कि वक़्त गुजर जाए
अबके बरसात शायद ये घर मेरा तबाह मिले
टुकड़ा टुकड़ा अंदर ही अंदर,बिखरा हुआ हूँ
ख़ुद से तन्हाई में, यूँ भूलके भी न आह मिले
गुदड़ियों में ज़ख़्मों को बड़े जतन से पाले हैं
मुमकिन है, ये जख़्म कभी बनके शाह मिले
कौन सी सूरत दें नासूर को नज़्मों में अपनी
आह के एवज़ गर शायर को वाह वाह मिले
(विनोद प्रसाद)