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जन्म के बाद

जब मेरी आँखों को

दृष्टिज्ञान हुआ

मैं ने एक चेहरा देखा

वो मेरी माँ थी

जब मेरी देह को

स्पर्श ज्ञान हुआ

मैं ने जिस स्पर्श में

कोमलता पाई

वो हाथ

मेरी माँ के थे

मेरी पहली ख़ुराक़

मेरी मांँ का दूध था

जो शब्द मैं ने

सबसे पहले

उच्चरित किए

वो माँ था

भूख मेरी थी

अनुभव मेरी माँ करती थी

आज कह सकता हूँ

संसार की सबसे सुरक्षित जगह

मेरे लिए

मांँ की गोद थी

अंतहीन है ये अनुभव

आज दीवार पर टंगी

मांँ की तस्वीर देखता हूंँ

भीग जाते हैं नैन

झुक जाती है गर्दन

ईश्वर को धन्यवाद

आपने

सृष्टि की सबसे बड़ी दौलत

हमें‌ दी

एक पिंड से

मनुष्य बनाया मेरी मां ने

जीवन मृत्यु एक क्रम है

मैं भी कल नहीं रहूंगा

किंतु,

माँ का दैव्य स्वरुप रहे

विनती करता हूँ

जो मैं नहीं देख पा रहा हूंँ

संभवतः मेरा दृष्टि दोष हो

शायद•••••

नास्ति मातृसमं त्राणं नास्ति मातृसमा प्रपा॥

🙏🙏🙏🙏

(विनोद प्रसाद)

 
 
 

चलो धूप से हटके छांव में बैठें फूलों की बातें करें

फिर फिर से दोहराने सी किसी भूल की बातें करें



दिल सुने दिल कहे दिल चाहे बस ऐसी गुफ़्तगू हो

क्यों तल्ख़ियों के चर्चे , क्यों फिज़ूल की बातें करें



कच्चे मकान के पक्के रिश्ते फिर याद किए जाएँ

गाँव की मटियाली सड़क और धूल की बातें करें



शफ़्फ़ाफ़ चाँदनी से रिश्ते की नज़्म हम बुनते रहें

बहिश्त की ख़्वाहिश हो जिन्हें रसूल की बातें करें



जिस्म पर लफ़्ज़ों की नक्काशी नहीं अशआर मेरे

दुख दर्द के किस्से कहें दिले मकबूल की बातें करें



निगाहों की हद से आगे परवाज़ अपनी चाहत की

क्यों रस्मों रिवाज तहज़ीब ओ उसूल की बातें करें


(विनोद प्रसाद )

 
 
 

मुझे इस तरह, वो भुला रही थी

अलगनी में कपड़े सुखा रही थी


भरी दोपहरी का वो वाक़्या था

जिद्द पर खुद को जला रही थी


हाथों की लकीरें खुरच रही थी

वो नसीब अपना मिटा रही थी


चुप चुप सी बैठी,तन्हाईयों को

वो कहानी अपनी,सुना रही थी


याद करके भूल रही है मुझको

भूल भूल कर याद आ रही थी


वक्त अपने मोहरे बिछा रहा था

जिंदगीअपने रंग दिखा रही थी


लाचारगी ये दिल दुखा रही थी

मजबूरियाँअपनी सता रही थी

(विनोद प्रसाद)

 
 
 
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