
मुमकिन नहीं कि हर मोड़ से अपनी राह मिले गुलों सा रंग आए जब भी आपनी आह मिले •••
- Vinode Prasad

- Sep 3
- 1 min read
मुमकिन नहीं कि हर मोड़ से अपनी राह मिले
गुलों सा रंग आए जब भी अपनी निगाह मिले
आईने में ख़ुद को देखना लाज़िम है मेरे दोस्त
जाने किस शक्ल में कब कौन सा गुनाह मिले
इन आँखों में जुगनुओं को संभाल कर रखना
कल की शब शायद तुझे और भी सियाह मिले
कुछ दिन और ठहर जाते कि वक़्त गुजर जाए
अबके सावन शायद, तुम्हें घर मेरा तबाह मिले
टुकड़ा टुकड़ा अन्दर ही अन्दर बिखरा हुआ हूँ
ख़ुद से तन्हाई में कोई भूलके भी न आह मिले
गुदड़ियों में जिन ज़ख़्मों को जतन से पाला था
वक़्त आएगा वही जख़्म बनके तुझे शाह मिले
दर्दो ग़म को अशआर में कौन सी सूरत दी जाए
आह के एवज गर उन नज़्मों को वाहवाह मिले
(विनोद प्रसाद)
Comments