
घबराए हुए है लोग,हांके पड़े शहर में तन्हाई की है चुगली,विरान से घर में •••
- Vinode Prasad

- Sep 2
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धबराए हुए हैं लोग हाँके पड़े शहर में
तन्हाई की है चुगली, विरान से घर में
कल तलक ये मौसम था रश्के बहारां
अब फूल भी चुभते हैं सबकी नज़र में
कच्चे सही, गाँव के रस्ते थे सीधे सादे
अब बन गई गलियाँ कई, राहगुज़र में
सहमी सी हर सुब्ह डर के अब आती
आंगन की साझेदारी गुम गई बशर में
कुछ लोग शहर के दौलत के असर में
कुछ लोग हैं मर रहे रोटी की फ़िक्र में
रास नहीं आती चकाचौंध की दुनिया
बनके फ़क़ीर चल पड़ूं दश्ते सफर में
(विनोद प्रसाद)
रश्के बहारां:बसंत ऋतु की ईर्ष्या
बशर:आदमी :: दश्ते सफर :वनगमन
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