top of page
Search

नहीं चाहिए,बाग बगीचे अपना तुम मृदुहास मुझे दोगे •••

नहीं चाहिए बाग बगीचे

अपना तुम मृदुहास मुझे दोगे


एक छोटा सा घर आंगन

एक मुट्ठी आकास मुझे दोगे


अंतहीन एक यात्रा ये जीना है

अपना जीवन दे दूँ सारा

तुम भी ये एहसास मुझे दोगे


चौखट पे खड़ी मिलेंगी तुमको

मेरी व्याकुल प्रतिक्षा

लौट आने की आस मुझे दोगे


माटी गुलाल बना दूं,आओ तो

फागुन के मौसम में

तुम मिलन मधुमास मुझे दोगे


आकांक्षाएँ मर जाए घुटन में

गुम जाए सब सपने

अंधकार में उजास मुझे दोगे


नहीं चाहिए बाग बगीचे

अपने तुम विश्वास मुझे दोगे


(विनोद प्रसाद)

 
 
 

Recent Posts

See All
मुमकिन नहीं है हर मोड़ से अपनी राह मिले ‌ ‌ ‌ ‌ एक बार मुश्किलात‌ से खुलकर निगाह मिले •••

मुमकिन नहीं है,हर मोड़ से अपनी राह मिले एक बार मुश्किलात से खुलकर निगाह मिले देखना आईने में ख़ुद को लाज़िम है ऐ दोस्त जाने किस चेहरे में...

 
 
 
है अब तेरे ज़ख़्मों में वो क़रार कहाँ अब तसल्ली पर मुझे ऐतबार कहाँ •••

है अब तेरे जख़्मों में वो क़रार कहाँ अब तसल्ली पर मुझे ऐतबार कहाँ अब दरीचे भी नहीं खुले मिलते तेरे कोई जाए भी कूचे में बारबार कहाँ हो गई...

 
 
 
कुछ भी तो है किया नहीं, तबियत के मुताबिक़ ‌ जो कुछ भी किया है बस रवायत के मुताबिक़ •••

कुछ भी तो है किया नहीं, तबियत के मुताबिक़ जो कुछ भी किया है बस ,रवायत के मुताबिक़ कू ब कू शोर बहुत है गुलशन में बहार आने की रंग फूलों के...

 
 
 

Comments


  • मंज़र
bottom of page